Poem

कत्तिन का गीत

रामधारी सिंह दिनकर

कात रही सोने का गुन चाँदनी रूप-रस-बोरी;
कात रही रुपहरे धाग दिनमणि की किरण किशोरी।
घन का चरखा चला इन्द्र करते नव जीवन दान;
तार-तार पर मैं काता करती इज्जत-सम्मान।

हरी डार पर श्वेत फूल, यह तूल-वृक्ष मन भाया;
श्याम हिन्द हिम-मुकुट-विमणिडत खेतों में मुस्काया।
श्वेत कमल-सी रूई मेरी, मैं कमला महारानी;
कात रही किस्मत स्वदेश की क्षीरोदधि की रानी।

वह घर्घर का नाद कि चरखे की बुलबुल की लय है?
यह रूई का तार कि फूटा जग-जननी का पय है?
धाग-धाग में निहित निःस्व, रिक्तों का धन-संचय है;
तार-तार पर चढ़ कर चलती कोटि-कोटि की जय है।

बोल काठ की बुलबुल, मुँह का कौर न रहे अलोना;
सैटिन पर बह जाय नहीं पानी-सा चाँदी-सोना।
एक तार भी कात सुहागिन, यह भी नहीं अकाज;
स्यात छिपा दे यही नग्न के किसी रोम की लाज।
मधुर चरखे का घर्घर गान,
देश का धाग-धाग कल्याण।

रामधारी सिंह दिनकर

Author Bio

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को

More

This post views is 26

Post Topics

Total Posts

403 Published Posts